चौराहा
एक संवाद ---(दिल्ली का कोई भी चौराहा)
चालक-एक झंडा देना ...
बच्चा- दस रूपए …
चालक- अबे लूट मचा रखी है…पांच में देगा …
बच्चा- साल में दो ही दिन तो होते हैं झंडा बेचने के…26 जनवरी और 15 अगस्त
चालक- अबे भाग जा …
इसी बीच दूसरा चालक - एक झंडा देना
बच्चा- दस रूपए
(चालक ने एक नोट निकाला बच्चे को दिया और कार आगे निकल गई )
बच्चे ने देखा उसके हाथों में सौ का नोट है …
वो खुश होता इससे पहले एक झटके से वो नोट किसी और के हाथ में था …
(ये ठेकेदार था जिसके लिए झंडा महज एक बिज़नस है)
चौराहे की बत्तियां जल बुझ रही है …
क़ाश आज कोई ग्रीन सिग्नल इस छोटू के लिए भी हो…
कोइ खिड़की ...
कोई रोशनदान …
कोई रास्ता …
या इंतज़ार अगले साल का ...
- अशोक कुमार अनुराग